सबसे अजीम रात है शब-ए-कद्र, इस रात इबादत से बंदे की हर गुनाह हो जाती है माफ्
शब-ए-कद्र की इबादत का कोई दूसरा सानी नहीं। दरअसल, इस्लाम धर्म में इस रात को हजार रातों से बेहतर रात बताया गया है। इस रात की फजीलत खुद कुरआन में बयान किया गया है।
बस्ती , रमजान का पाक महीना शुरू होते ही मुस्लिम समाज के लोग इबादत में मशरूफ हो जाते हैं। दिनभर रोजा रखने, कुरआन की तिलावत करने और दूसरे नेक काम करने के साथ ही रात में तरावीह की नमाज अदा की जाती है। यानी इस पवित्र महीने में दिन-रात दोनों ही मुसलमान इबादत में मशरूफ रहते हैं। लेकिन इस महीने में शब-ए-कद्र की इबादत का कोई दूसरा सानी नहीं। दरअसल, इस्लाम धर्म में इस रात को हजार रातों से बेहतर रात बताया गया है। इस रात की फजीलत खुद कुरआन में बयान किया गया है। इस रात में खुदा खुद निदा लगाता है कि है कोई माफी का लतबगार, जिसे मैं माफ कर दूं। है कोई रिज्क का चाहने वाला, जिसकी रिज्क कुशादा कर दूं। गोया कि इस रात में मांगी गई बंदे की हर दुआ कुबूल होती है। लिहाजा, शब-ए-कद्र की रात में लोग रातभर इबादतों में मशगूल रहते हैं, जिनमें नफिल नमाज, कुरआन की तिलावत, तसबीहात (जाप), जिक्रो-अजकार वगैरा पढ़ना अहम है। नफिल उस नमाज को कहते हैं, जो अनिवार्य नहीं, बंदा अपनी इच्छा से अपने रब को राजी करने के लिए पढ़ता है।
रमजान के आखिरी 5 विषम रातों में से एक है शब-ए-कद्र
पैगंबर साहब के एक साथी ने शब-ए-कद्र के बारे में पूछा तो आपने बताया कि वह रमजान के आखिर अशरे (दस दिन) की ताक (विषम संख्या) यानी 21, 23, 25, 27 और 29 की रातों में से एक है। आप ने शब-ए-कद्र पाने वालों को एक मख्सूस दुआ भी बताई, जिसके मानी है 'ऐ अल्लाह तू बेशक माफ करने वाला है और पसंद करता है माफ करने को, बस माफ कर दे मुझे भी।'
इसी रात में हुआ था कुरआन का नुजूल
शब-ए-कद्र की अहमियत इसलिए भी बढ़ जाती है, क्योंकि अल्लाह ने अपने बंदों की रहनुमाई के लिए इसी रात में कुरआन को आसमान से जमीन पर उतारा था। यही वजह कि इस रात में कुरआन की तिलावत भी सिद्दत से की जाती है। शब-ए-कद्र गुनाहगारों के लिए तौबा के जरिए अपने पापों पर पश्चाताप करने और माफी मांगने का बेहतरीन मौका होता है। अकीदत और ईमान के साथ इस रात में इबादत करने वालों के पिछले सारे गुनाह माफ कर दिए जाते हैं। हालांकि, उलेमा का कहना है कि जहां भी पिछले गुनाह माफ करने की बात आती है वहां छोटे गुनाह बख्श दिए जाने से मुराद है। दो तरह के गुनाहों कबीरा (बड़े) और सगीरा (छोटे) में, कबीरा गुनाह माफ कराने के लिए सच्ची तौबा लाजमी है। यानी इस यकीन और इरादे के साथ कि आइंदा दोबारा कबीरा गुनाह नहीं होगा।